चल फिर, जीवन धार में उतरें
उम्मीदी पतवार को लेकर,
चल फिर, जीवन धार में उतरें।
क्या होगा, उसका भय छोड़ें,
चल फिर, इस मझधार में उतरें।
जो चाहा वो, मिलना मुश्किल,
नामुमकिन, कुछ काम नही है,
जग ना समझे, लेकिन फिर भी,
स्वप्न अनमोल, कुछ दाम नही है
अपनी ताकत, कमजोरी सब ले,
टकराने, संसार से उतरें।
क्या होगा, उसका भय छोड़ें,
चल फिर, इस मझधार में उतरें।
है टूटा, जो जाम उठाया,
है छूटा, जग में जो भाया,
लाख अंधेरे जब छाए थे,
आशाओं ने राह दिखाया।
छाई अंधेरी, उम्मीदों के,
दीप लिए फिर हाथ में उतरें।
क्या होगा उसका भय छोड़ें,
चल फिर, इस मझधार में उतरें।
Comments
Post a Comment