बलिप्रथा और मांसाहार

किसी के घर मे कोई बीमार पर गया या फिर ऐसा कुछ हुआ तो तो तुरंत मन्नत मांग लेते हैं।और बाद में जब बके मन मुताबिक काम हो जाता है तो उन्हें लगता है हम कबूल थे इसलिए ये काम पूरा हुआ।और जाकर बलि दे देते हैं। किसी का कोई अपना खो गया तांत्रिक ने बोला बलि दो तो मिल जाएगा। लेकिन ये सब सिर्फ अंधविश्वास है। ये सिर्फ इसलिए बोला जाता है कि वो लोग बाद में उस बलि जीव से पार्टी करते हैं। आज के दिन कोई भी तांत्रिक हो सब शराब, नशे के आदी होते है। तो बकरा मिल गया तो हो गई पार्टी। 

मेरे हिसाब से जो मेरा मन कहता है कि बलि प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है। विगत में मानव जंगल मे रहता था और विकास के चरण में था। वो शिकार करता था। उसने सूर्य इत्यादि की पूजा शुरू कर दी थी  वो शिकार भी करता था और खेती भी शुरू की। धीरे धीरे खेती बढ़ने लगी शिकार कम हुआ तो मानव ने शिकार के लिए नियत समय तय किया होगा की जब खेती कम होगी तब शिकार करेंगे। इसलिए देखिए दोनो नवराते दोनो मुख्य फसल रवी और खरीफ के लगभग मध्य में पड़ते है उसके बाद ही खेती शुरू होती है। 

मेरे उसी समय शिकार करके या पकड़ कर पशु लाये जाते होंगे। कोई ज्यादा शिकार करता होगा कोई कम। अब कोई बड़ा जानवर होगा तो उसको एक परिवार नही खत्म कर पायेगा। पहले फ्रिज तो नही थे। तो उसको मिल बांट कर खाने लगे। धीरे धीरे समय फिक्स किया होगा कि इस समय सब  बलि देंगे। अब अगर बलि देंगे तो प्रसाद बन जायेगा तो सबको बंटेगा और सब मिल बांट कर खाएंगे। 

धीरे धीरे ये प्रथा बन गयी। अब बलि प्रथा मांसाहार को धार्मिक मान्यता से ज्यादा कुछ नही। ये इस समय कम हो रही है लेकिन क्योंकि ये धर्म से जुड़ गया है और धार्मिक रीतियों को खत्म करना कठिन होता है ये सिर्फ सही ज्ञान से हो सकता है। लेकिन क्यों बन्द हो?? मेरे कुछ प्रश्न हैं

मुझे कोई ये बताए कि अगर हम मांसाहार करते है तो बलि देने में हर्ज क्या है। आखिर हम जो खाते है उसको मिल बांट कर खाने में क्या हर्ज?

अगर जीव हत्या पाप है तो सिर्फ बलि के समय ही क्यों याद आती है? जब दुकान से नॉनवेज लाते है तो क्यों नही सोचते अगर सही में जीव हत्या पाप है तो यकीन मानिए दुकांनदार को वो पाप नही लगता। वो खरिदने वाले को लगेगा। अब अगर एक मुर्गे और एक बकरा दोनो एक ही जीव है तो मुर्गे के चिकन में पाप 3 से 4 लोगो मे बंटेगा यानी 1 जीव हत्या का पाप 3 से 4 में? बकरे को 20 लोग खाते है तो पाप 20 में बंटेगा इस हिसाब से बड़े जीव की हत्या में कम पाप होगा क्या??

अगर हत्या सच मे पाप है तो श्री राम हिरण की पूजा करने गए थे क्या। बहुत से ऋषि सिंह की खाल पाए या हिरण की खाल का प्रयोग करते थे तो वो कहाँ से आती थी।

मेरे हिसाब से मांसाहार और बलि दोनो बन्द होनी चाहिए। लेकिन अगर सोचें तो ये क्या सम्भव है? ऐसा होना गम्भीरतम जैविकी समस्या उत्पन्न कर देगा। सब जीवो का संतुलन ही जीवन को बचाये है अन्यथा जीवन पर गम्भीर संकट उत्पन्न होगा

अगर आप देखें तो संसार में प्रतिदिन करोड़ो जीव मारे जाते होंगे अगर वो कुछ समय के लिए बिलकुल रुक जाए तो कुछ ही दिनों में वो जीव परेशानी पैदा कर देंगे। कैसे तो देखिए, मानव जितने भी जीव का भक्षण करता है वो शाकाहारी होते हैं अगर करोड़ो जीव बच गए तो वो पेड़ पौधों को खाना शुरू कर देंगे। और शिकारी जीव भी धीरे धीरे बढ़ जाएंगे। फिर 2 तरफा खतरा उत्पन्न होगा एक तो शिकारी जीव बढ़ जाएंगे क्योंकि खाना बहुतायत होगा। शाकाहारी जीव बढ़ेंगे तो पेड़ कम होते जाएंगे। जो मानव जीवन और सभी जीवों पर खतरा बन जायेंगें। पृथ्वी का जीवन चक्र बिगड़ जाएगा।  

दूसरी तरफ अगर सब सिर्फ शाकाहारी होंगे तो क्या इतना भोजन उपलव्ध है? नही है। तो जो जैसा खाता है उसको वैसा करने दें। 

मेरे हिसाब से पेट भरने के लिए किया गया कोई काम पाप नही, स्वरक्षा के लिए कोई हत्या पाप नही ये तो कानून भी कहता है। 

पशु हत्या विशेषकर गो हत्या पर होने वाला अभी का बबाल गाय को बचाने के लिए नही है ये विशुद्ध रूप से व्यापारिक हो हल्ला है। जो बड़े बीफ कटलर होते है वो पार्टियों को मोटा चन्दा देते है। बीफ की विदेशों में विशेषकर गल्फ देशों में बहुत माँग है उसके बहुत ही ज्यादा प्राइस है वहां। सोचिए अगर ये सब देश मे ही खपत होगा तो निर्यात में कम माल मिलेगा। लोग या छोटा पशु विक्रेता उसको बेचेगा तो ये व्यापार की हानि है। इसलिए जनभावना को भड़का कर ऐसे हालात पैदा किये गए कि कुछ खास तरह के पशु जिनकी विदेशों में भारी मांग है को कुछ बड़े फेक्ट्रियो में ही भेजा जाए और वो भारी मुनाफा कमाए। इस मुहिम का धर्म से कोई मतलब नही।

तो जो जैसा जो खाना चाहे करने दें। ये सब मानव जीवन का हिस्सा है। क्योंकि जब दुनिया मे लाखो लोग शाकाहार मांसाहार तो छोड़िए 1 वक़्त भोजन नही मिलता और कुछ लोग भोजन फेंकते है  मेरे हिसाब से भोजन की बर्वादी सबसे बड़ा पाप है।

**किसी की भावना को आहत करना मेरा लक्ष्य नही। लेकिन अगर सच सुन कर किसी की भावना आहत होती हो तो हो तो वो अपनी भावना को मजबूत बनाये, मैं कुछ नही कर सकता।**

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