रॉन्ग नंबर भाग 1 से 3 (सम्पुर्ण कहानी)

आज मैने पहली कहानी लिखनी शुरु की। मेरे एक मित्र जो इसी कहानी के पात्र है ने मुझे ये सुअवसर प्रदान किया की मै पहली कहानी लिख सकूँ। उनका आभार। आप सब मित्रों से अनुरोध है की मेरा मार्गदर्शन करें, गल्तियों के लिये मुझे माफ करें, और मुझे बताये जिससे मे इस विधा मे कुछ सीख ले कर आगे बढ़ पाऊँ।


आज ने आधुनिक युग में प्यार बिना देखे हो जाता है ये सही है, क्योंकि शायद हम इतने सोशल हो गए है कि आज पास कोई दोस्त हो न हो लेकिन सोशल मीडिया पर हज़ारो लोग दोस्त है। और प्यार प्यार न होकर खेल जैसा हो गया है। ये बात 70% ही सही हो लेकिन सही है। वैसे भी ये काम हमेशा से होता रहा है अपने मतलब के लिए प्यार और फिर उसे छोड़ देना।

ये प्यार क्या है एक खिलौना है,

टूट जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है



ट्रिन ट्रिन मोबाइल पर लगातार जा रही घंटी के बाद किसी लड़की ने फ़ोन उठाया। अपने दोस्त को किये फ़ोन पर लड़की की आवाज सुन कर रमेश चौक गया था।

रमेश -- हल्लौ..हल्लौ.. कौन बोल रहा है।

उधर से आवाज आई-- आप बताईये आप कौन बोल रहे हो? कॉल अपने किया है।

उधर से आई मीठी आवाज मे रमेश ऐसा खो गया जैसे की रेगिस्तान की मरुभूमि पर सरिता की सुरमय कल-कल की आवाज आ रही हो। फिर अचानक से होश मे आते हुए रमेश बोला-- क्या सूरज से बात हो सकती है?

रॉन्ग नम्बर, लड़की ने मीठी आवाज में जोर से बोला।

सॉरी ये नम्बर मेरे दोस्त ने नया लिया है, शायद गलती से आपका नम्बर मिल गया, क्या आप बता सकती हो की आप कहाँ से बोल रही हो? रमेश ने बात आगे करने के लिये बोला, उसका मन कह रहा था की ये आवाज हमेशा उसके कानो में, दिमाग मे, दिल मे गूंजती रहे। वो उसकी आवाज मे खोता जा रहा था।

आप ये क्यूं पूछ रहे है, बोला तो रॉंग नम्बर है, की आवाज से रमेश ख्यालो की दुनियां से बहार आया।--
नही बस ऐसे ही पूछ रहा था।

"कानपुर" उधर से वही मीठी आवाज आई

आपका नाम? रमेश ने फिर पुछा।

नाम से आपको क्या करना है.... फ़ोन कट।

जीवन के रास्ते मे चलते हुए कब क्या हो जाये कोई नही बता सकता। कभी कभी कोई गलती से भी कुछ ऐसा मिल जाता है कि आप हज़ार सही काम करके भी नही पा सकते। आज उस मीठी आवाज ने उसको अजीब सा सुखद अहसास दिलाया था, एक गलत कॉल ने उसकी जिन्दगी जैसे बदल ही दी थी।

उस मीठी आवाज ने उसको दीवना बना दिया था। दिन रात बस वही आवाज उसके कानों मे शहद की तरह घुलती जा रही थी। ऑफ़िस मे भी बॉस दो बार बोल चुके थे कि रमेश तुम्हरा ध्यान कहाँ है, काम में ध्यान लगाओ। लेकिन वो बात दिमाग तक पहुंची ही नही।

किसी तरह दो दिन तक दिल को संभालने के बाद आज उसने फिर वो नम्बर मिला दिया। वहाँ से वही मीठी आवाज आई -हल्लौ।

हल्लौ जी, क्या हाल हैं आपके? रमेश ने पुछा।

अरे आप कौन हैंं, अब हाल पूछ रहे हैं, उस दिन बोला गलती से नम्बर लग गया, आज फिर कॉल क्यूँ? उधर से आवाज आई।

मैं अजनबियों से भी हालचाल पूछ लेता हूँ। रमेश ने शरारती अन्दाज मे बोला। वैसे भी अब हम अजनबी नही है। दुसरी बार बात हो रही है आज। और आज फ़ोन गलती से नही लगा, मैने आपकी दिलकश आवाज सुनने के लिये ही कॉल मिलाया है। रमेश बिना रुके बोले ही जा रहा था कि उधर से आवाज आई।

अरे अरे रुको, ये क्या बोलते ही जा रहे हो, अजनबी हो, और बोल रहे हो अजनबी नही। फ़ोन मिला कर तंग कर रहे हो। ऐसे तुम्हारे बोलने से अजनबी नही रहेंगे क्या हम। आज हाल पूछ रहे हो, कल पता पूछोगे, ऐसे भी कभी होता है? वो थोड़े गुस्से मे बोले जा रही थी।

मै रमेश, आपका क्या नाम बता दोगी तो मैं उस नाम से नम्बर सेव कर लूँगा और हम अजनबी नही रहेंगे फिर। आप से दोस्ती हो जायेगी।

नही! मैं अजनबियों को नाम नही बताती और ना ही दोस्ती करती हूँ। और अब फिर फ़ोन ना करना मुझे। फ़ोन कट।

उसके गुस्से को देखकर रमेश का ख्वाबो का महल, बनता उससे पहले ही ढहने लगा। और रमेश ने अपने दिल को समझा लिया की वो एक सुनहरा सपना था। लेकिन फिर 15 दिन बाद मोबाइल पर उसी नम्बर से आई मिस कॉल देख कर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।

क्रमश:

रमेश ने अपने दिल को समझाना शुरु ही किया था कि 15 दिन के बाद उसी नंबर से आये मिस कॉल से उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। उसने जल्दी से कॉल मिलाया लेकिन नंबर बिजी आ रहा था। उसके मन मे हजारों तरह के विचार तेज गति से आ जा रहे थे कि क्या सच मे कॉल आई, गलती से मिल गई, क्यो, क्या, कैसे... इन्हीं सवालों के कारण उसका दिल तेज गति से धड़क रहा था। रमेश लगातर कॉल करने की कोशिश कर रहा था और आखिर फ़ोन मिल ही गया। और उधर से वही मीठी- दिलकश आवाज,

हेल्लौ!

जी बोलिए आज आपने फ़ोन किया या रॉन्ग नंबर मिल गया? रमेश मे शरारती अन्दाज मे पुछा।

मेरा नाम मीनू है। वैसे ही बात करने का मन कर रहा था।

अच्छा उस दिन मैंने दोस्ती के लिये पूछा था तो अपने बोला था की अजनबियो से बात नही करती, अब क्या हुआ आपको। रमेश ने थोड़ा नाराज होते हुए पुछा।

आपकी बात सुनकर मैं इतने दिन सोचती रही। अब हिम्मत करके कॉल किया, क्या आप मुझसे दोस्ती करोगे? मीनू ने इतने प्यार और मासूमियत से पूछा की कोई भी पिघल जाता यहाँ तो रमेश पहले ही दिल हार कर बैठा था।

नही! मै अजनबियों से न बात करता हूँ और न दोस्ती। रमेश ने लड़की की आवाज मे बोलने की कोशिश करने के अन्दाज मे कहा। हाहाहहा दोनो तरफ से एक साथ हँसने की आवाज आई।

फिर दोनो रोज बात करने लगे, फ़ोन पर हुई दोस्ती, गहरी होते हुए प्यार मे बदलती गई। दोनो इतनी बात करते थे कि जैसे दूर होने की कमी को शायद ऐसे ही पूरा कर लेना चाहते थे। दोनो मिले नही थे लेकिन चैट, कॉल, वीडियो कॉल, सब से दूर होने का दर्द कम हो जाता है। दोनो ने शादी, हनीमून, बच्चे, घर, बुढापा सब तय कर लिया था। लेकिन वक़्त से पार पाना किसी की बस की बात नही।

रमेश ने अपनी सारी बात अपने दोस्त सतेन्द्र को बताई थी। और मीनू को भी अपने दोस्त के बारे मे सब बताया था। सतेन्द्र ने एक दो बार मीनू से भी बात की थी और जब दोनो का झगड़ा हो जाता तो वो ही दोनो को समझाता था। मीनू और रमेश उसे अपना शुभचिंतक समझ कर उसकी बात सुनते भी थे और मानते भी थे। सतेन्द्र ने दोनो को समझाया था की वो एक दुसरे का साथ कभी ना छोड़ें।

एक बार मीनू ने सतेन्द्र से पूछा की आपकी गर्ल फ्रेंड चीन की है? मुझे रमेश ने बताया था।

हाँ, लेकिन ये क्यों पूछ रही हो? सतेन्द्र बोला।

ऐसे ही, संभल कर रहियेगा चीन का सामान ज्यादा नही चलता तो ये गर्ल फ्रेंड...। मीनू ने छेड़ते हुए बोला।

ठीक है अगर बात नही बनी तो दुसरी ढूँढ लेंगे, आप भी साथ दे दीजियेगा ढूँढने में। सतेन्द्र ने भी मजाक मे जवाब दिया। क्या अपके घर मे सबको पता है रमेश के बारे मे? क्या उनको कोई परेशानी तो नही होगी ना शादी से। सतेन्द्र ने पुछा

नही! सबको पता है, दादा जी को पापा को, दोस्तों को भी, किसी को कोई परेशानी नही होगी। बस कुछ दिनों में एग्ज़ाम है, उसके बाद रमेश से कहिएगा की बात करे शादी की। मीनू की आवाज मे एक खनक थी, खुशी की।

एक दिन रात को रमेश का फोन आया और उसने सतेन्द्र से बोला कि मीनू सुबह से फोन नही उठा रही है। उसका मन अन्जाने ड़र से बैठा जा रहा था कि क्या हुआ। पूरी बेल जा रही थी लेकिन कोई फ़ोन नही उठा रहा था। सतेन्द्र ने भी ट्राय किया लेकिन फ़ोन नही उठ रहा था।उसने रमेश को समझाया की उसके एग्ज़ाम चल रहे है इस वजह से फ़ोन नही उठा रही होगी। चिंता की कोई बात नही। ये समझा कर सतेन्द्र ने रमेश को शान्त किया लेकिन प्यार का मारा दिल कब कुछ समझता है। मन मे हजारों बुरे ख्याल रात भर उसे सोने नही दे रहे थे और दिन मे फ़ोन मिला मिला कर उसकी हालात खराब थी।

आखिर दो दिन बाद रमेश ने सतेन्द्र को फोन करके कहा मीनू अस्पताल मे है। उसको दिल की बिमारी है। मैं जिसे इतना प्यार करता था, जिससे शादी करनी थी उसको ये बिमारी। अब कैसे शादी होगी मेरे घर वाले नही मानेंगे। बड़े खर्चे वाला रोग है। अब कुछ नही हो सकता। रमेश एकतरफा बोले जा रहा था,

सतेन्द्र ने समझने की बहुत कोशिश की कि अभी मीनू को तुम्हारे साथ की जरुरत है, तुमने हमेशा साथ निभाने का वादा किया था उसका क्या, अगर ये बात शादी के बाद पता लगती तो क्या करते, लेकिन रमेश पर कोई असर नही हो रहा था वो अपनी ही धुन मे था।

सतेन्द्र ने तुरंत मीनू की फ़ोन किया। और डांटा की ये बात पहले क्यों नही बताई।

जिसको ये बात पूछ्नी थी उसने कुछ नही पूछा, न कुछ बोला, बात सुनी और फोन काट दिया, फिर आप क्यों ये पूछ रहे हो। मैं मर ही जाऊंगी तो सब ठीक हो जायेगा। मीनू ने रोते हुए कहा।

अब इसमे मरने की बात कहाँ से आ गई। तबियत खराब है ठीक हो जायेगी। रमेश को तुम्हरा सुनकर धक्का लगा है। तुम मरने वाली बात फिर ना बोलना। सतेन्द्र ने मीनू को चुप कराते हुए कहा।

आपको एक बात और नही बताई। मेरी बिमारी मे बहुत खर्चा हो रहा है। पिताजी को पसंद नही, वो दो बार बोल चुके है की इससे अच्छा मर जाती तो अच्छा था। एक बस माँ है जो हमको बचाए हुए है। मीनू लगातर रोए जा रही थी।

और सतेन्द्र उसको चुप कराते हुए सोच रहा था की क्या कोई अपनी संतान को ऐसा बोल सकता है? क्या मीनू बेटा होती तो भी ऐसा बोला जाता। क्या लड़की होना सच मे पाप ही रहेगा? इसी पशोपेश मे सतेन्द्र ने मीनू को समझाते हुए चुप कराया और वादा लिया कि कोई जरुरत होगी तो फ़ोन जरूर करेगी।

क्रमश:

सतेन्द्र इसी उधेड़बुन में रहा कि क्यों आज भी लड़कियाँ बोझ ही हैं। पूरा दिन ऐसे ही बीत गया। अगले दिन उसने मीनू को फ़ोन किया।

हल्लौ, कैसी हो अब।

बस, जिन्दा हूँ मरने के इन्तजार में। मीनू ने बोला

तुम हमेशा ये ही क्यों बोलती हो। माँ को फ़ोन दो। सतेन्द्र ने कहा।

ठीक है लो। कर लो माँ से बात। मीनू ने फ़ोन माँ को देते हुए कहा।

प्रणाम मांजी। आप मुझे पहचानती नही हो, मै मीनू का दोस्त हूँ। ऐसा कैसे हो गया। सतेन्द्र ने पुछा।

उसकी तबियत बहुत दिनो से खराब थी, लेकिन अभी ज्यादा हो गई है। ऑपरेशन के लिये बोला है लेकिन कुछ दिन दवाई देनी होगी। माँ ने दुखी होते हुए कहा।

कितना खर्चा बताया है। सतेन्द्र ने पूछा।

बहुत खर्चा बताया है लेकिन मैं उसको कुछ होने नही दूँगी। माँ ने बोला।

आप उसकी माँ है। आप तो उसके लिये करोगे ही। लेकिन मैं भी कुछ मदद करना चहता हूँ आप मुझे बताईये। जो भी हो सकेगा मैं करूंगा, उसका इलाज ठीक से होना चाहिये बस। सतेन्द्र ने दिलासा देते हुए कहा।

दवाई से ठीक हो जायेगी, नही तो बाद मे ऑपरेशन करने की बात डाक्टर ने कही है। हम आज घर जा रहे है। अभी सब ठीक हो गया है। घर जाने की तैयारी कर रही हूँ। आप फ़ोन करते रहियेगा। माँ ने फ़ोन रखते हुए बोला

उसके बाद ऑफ़िस जाते हुए सतेन्द्र ने रमेश को फोन किया। 

तू उससे प्यार करता है या नही करता? सतेन्द्र ने गुस्सा होते हुए रमेश से पूछा।

हाँ करता हूं, लेकिन मेरे पास पैसा नही जो उसका इलाज करवा सकूँ। ये बिमारी पता नही कब क्या हो जाये ये अमीरो का रोग है। रमेश ने बोला।

भाई पैसे की चिंता ना कर। पैसा का तो इन्तजाम हो जायेगा, मैं भी हैल्प कर दूंगा, सब ठीक हो जायेगा। अभी तू उससे बात कर, तुमने वादा किया था एक दुसरे का साथ नही छोड़ोगे और ये एक ही मुसीबत मे ये हाल हो गया। उसकी माँ से बात कर उनको दिलासा दे कि सब ठीक हो जायेगा। मीनू सबको बोल चुकी है कि तुमसे शादी करेगी, ऐसे मे तुम बात नहीं करोगे तो कैसा लगेगा।सतेन्द्र ने उसे सच्चे दोस्त की तरह समझाया। और ये भी कहा मीनू ने कहा है की उसको फ़ोन करने के लिये।

हाँ हाँ अभी कर लूँगा भाई। रमेश ने कहा।

लेकिन उसने फ़ोन नही किया या किया या नही किया ये बात सतेन्द्र को नही बताया। दो दिन बाद जब सतेन्द्र ने मीनू को फ़ोन किया।

हल्लौ कैसी हो मीनू।

मुझे ज्यादा परेशान ना करो, वर्ना सिम बदल लुंगी। मीनू ने अजीब से लहजे मे बात की जो सतेन्द्र को भी बहुत बुरी लगी।

क्यों क्या हुआ, सिम क्यों चेंज करोगी? सतेन्द्र ने पूछा।

ज्यादा बकवास ना करो, फ़ोन कट।

सतेन्द्र ने उसके अजीब व्यवहार को बताने के लिये रमेश को फ़ोन किया।

क्या हुआ तुम दोनो में? मीनू ऐसे बात क्यो कर रही थी? सतेन्द्र ने रमेश से पूछा

वो बड़ी घमंडी लड़की निकली यार, पता नही क्या समझती है खुद को। खुद करेगी मुझे फ़ोन एक दो दिन मे जब अक्ल ठिकाने आयेगी। रमेश गुस्से मे बोला।

ठीक है मेरा क्या है मैं तो वैसे ही समझा रहा था, कह कर
सतेन्द्र ने फोन कट कर दिया। लेकिन उस दिन के बाद सतेन्द्र या रमेश के पास कोई कॉल नही आया। मीनू ने अपना नंबर बन्द कर दिया था

सतेन्द्र ने रमेश को समझाया कि उसे भूल जाओ। अब क्या बात हुई, ये तो तुम दोनो ही जानते हो। जब उसको जरुरत थी तब तुमने साथ नही दिया, अब जो होना था हो गया। अब आगे बढ़ो।

छ: महिने तक मीनू से किसी का कोई कॉन्टेक्ट नही हुआ। एक दिन सतेन्द्र को अपने वाट्सअप पर अचानक मीनू के नंबर पर ऑनलाइन दिखा। सतेन्द्र ने चेक करने के लिये उसपर मैसेज भेजा।

वहाँ से रिप्लाई आया आप कौन।

सतेन्द्र: आप मीनू है?

नही, मैं जगत, उसका भाई हूँ। आप कौन?  उधर से जवाब आया।

सतेन्द्र:  मैं मीनू का दोस्त हूँ, क्या उससे बात हो सकती है।

जगत: कौन दोस्त। कब से जानते हो मीनू को

सतेन्द्र: मैं उनका दोस्त हूँ, मलेशिया मे जॉब करता हूँ। उससे फ़ोन पर ही बात हुई थी। छ: महिने से बात नही हुई। उसको एक साल से जानता हूँ।

कैसा दोस्त। जगत ने पुछा

मैं बस दोस्त हूँ, जैसे दोस्त होते है। तुम्हरे भी दोस्त होंगे। मीनू कैसी है। सतेन्द्र ने पूछा।

जगत: उसका ना पूछिये, आपको पता नही होगा उसको दिल की बिमारी है और पापा उसका ऑपरेशन नही करवा रहे। कितनी बार झगड़ा भी हुआ घर मे। मै पढ़ता हूँ, कुछ कर नही सकता।

सतेन्द्र:  मुझे पता है, उसकी बिमारी के बारे मे। क्या उससे बात हो सकती है?

जगत: ठीक है मैं पांच मिनट मे करवा देता हूँ। अभी बाहर हूँ। वो बात करेगी या नही पता नही। आजकल किसी से बात नही करती। अकेले मे गुमसुम रहती है। लेकिन पिताजी को बहुत प्यार करती है, मगर क्या करे, पिताजी समझ ही नही रहे उसको इलाज की कितनी जरुरत है।

पांच मिनट बाद सतेन्द्र ने फिर मैसेज किया। तो मीनू ने पहचान लिया।

मीनू:  अब क्यो  मैसेज कर रहे है। मैं तो मर गई ना।

सतेन्द्र ने कॉल किया और बोला ऐसी बात क्यों कर रही हो आप। अपने ही तो नंबर बन्द कर दिया था और बोला था कॉल न करने को।

मीनू: रमेश कैसा है? खुश होगा वो।

सतेन्द्र: नही, आपको याद करता है। आपको नंबर दूँ उसका। उसने भी नंबर बदल लिया है।

अब क्या करना नंबर का। जब बात ही नही करनी तो। मीनू ने रोते हुई आवाज मे कहा।

क्या हुआ, दोस्त समझती हो तो बताओ। सतेन्द्र ने आग्रह करते हुए पूछा।

मेरा ऑप्रेशन उसी टाईम होना था जब मैं अस्पताल मे थी। रमेश का फ़ोन आया तो मैने उसे सब बताया, पैसो की भी जरुरत थी वो भी बताया। उसने मना कर दिया। माँ भी सुन रही थी, वो बोली जो अभी ऐसे कर रहा है वो शादी के बाद कैसे साथ देगा। तभी आपका भी फ़ोन आया। आपने पैसे के लिये बोला भी मुझे बहुत अच्छा लगा, लेकिन जिससे उम्मीद थी, उसने ही साथ नही दिया तो आपसे कैसे मदद लेती। इसलिये बोला की दवाई से ठीक हो जायेगा। फिर घर आकर रमेश से बात की, लेकिन उसका बात करने का तरीका ही बदल गया था, तो मन को बहुत दुख हुआ, उसी गुस्से मे आपको भी बोल दिया फ़ोन न करना।
सिम बदल लिया। अब बस मरने का इन्तजार कर रही हूँ। आपसे बात हुई अच्छा हुआ। माफी भी मांगनी थी।  मीनू ने सतेन्द्र को सब बताया।

सतेन्द्र अब सोच मे पड़ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है।रमेश ने ऐसा क्यों किया होगा। कौन सच बोल रहा है।

उसकी बात कभी कभी मीनू से होने लगी तो कभी उसके भाई से। मीनू हमेशा मरने की बात करती, उसके मुताबिक अब कुछ ही दिन बाकी थे जिन्दगी के।

एक दिन सतेन्द्र ने जगत से कहा कि मीनू मुझसे पैसे नही लेगी, लेकिन अगर मैं तुम्हारे अकाउंट मे पैसे डाल दूँ तो उसको देकर उसका ऑप्रेशन करवा दो।

नही ऐसा नही हो सकता, मैं पढ़ता हूँ, इतना पैसा कहाँ से आया मै इसका जवाब कैसे दूंगा। जगत ने कहा।

चलो तुमको प्रॉब्लम होगी तो नही दूँगा तुम्हारे अकाउंट मे। घर जाकर मेरी बात मीनू से करवा देना। सतेन्द्र ने बोला।

तुम आगे पढाई क्यू नही शुरु नही करती। मन भी लगेगा तुम्हरा मन नही करता क्या। सतेन्द्र ने पूछा।

करता तो है, माँ को भी एक बार बोला था। वो बोली एक बार फेल हो गई हो, अब आगे पढ़ कर क्या फायदा। वैसे भी इलाज मे इतना पैसा लग रहा है,  पढाई, दवाई, इलाज इतना खर्चा नही हो पायेगा। मीनू ने बोला।

तुम आगे पढ़ना चाहती हो?  सतेन्द्र ने पूछा।

हाँ, लेकिन नही हो सकता ना। पैसा नही है कि पढ़ पाऊँ।मीनू ने कहा।

अगर तुमको आगे पढ़ना है तो, मै तुम्हारी मदद करूंगा। सतेन्द्र  ने कहा।

नही, अपने बोला अच्छा लगा लेकिन अपका अहसान नही भूलुँगी। मीनू ने बोला ही था।

ठीक है आज से मे फोन नही करूंगा। दोस्त होकर अहसान की बात। दोस्त ही दोस्त के काम आता है।अब कभी बात नही करना। सतेन्द्र ने गुस्सा होकर बोला।

नही ऐसी बात नही। आप इतने अच्छे हो कि मै कह नही सकती। आपकी वजह से में पढ़ पाऊंगी। आपने मुझे देखा भी नही है। कोई रिश्ता भी नही फिर भी इतनी मदद। मैने आज तक इतना अच्छा इन्सान नही देखा। ठीक है मै अब आगे पढूंगी। मीनू ने खुश होकर बोला। उसकी आवाज मे वही पुराना मीठापन था।

कुछ दिन बाद मीनू का फ़ोन आया।

आप से एक बात करनी है लेकिन आप वादा करो की गुस्सा नही करोगे, और मेरी बात मनोगे। मीनू ने कहा।

बोलो तो, क्या बात है। सतेन्द्र ने पुछा।

नही पहले वादा करो फिर। मीनू ने वही मीठी और नाज़ूक अन्दाज मे बोला।

अच्छा बाबा वादा। सतेन्द्र ने बोला।

अगर मैं बच गई तो आप को मेरे साथ रहना होगा। आई लव यू सतेन्द्र, मुझसे शादी करोगे। और फोन काट दिया। मीनू ने ऐसा बोल कर सतेन्द्र को चौका दिया।

सतेन्द्र को ये उमीद नही थी। उसका दिमाग घूम गया। वो कुछ सोच नही पा रहा था  कि क्या बोले। 30 मिनट मे ही वो 10 सिगरेट पी गया।

आखिर सतेन्द्र क्या करेगा।  इसका पता आगे के भाग मे।


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