ब्रेकिंग न्यूज़ और पत्रकार

कैसी बारूदी हवा चली कि बुझते, 

आजादी के सब दीप महान,

आज कलुष सा सबका चेहरा,

सबने ही लूटा देश महान।

अगर कोई सच मे देश के न्यूज़ चैनल विशेषकर शाम को देखता है तो सबकी नज़रों में आज आजादी के नेता भी बंट गए है। पटेल को बड़ा दिखाने के लिए नेहरू को छोटा किया जा रहा है। गांधी की काट के लिए सावरकर को सामने लाया जा रहा है। मैं समझ नही पा रहा कि कैसे सिर्फ मूर्ति बना देने से पटेल बड़े हो जाएंगे? वो वैसे ही बड़े है, सरदार सरोवर बांध सबसे बड़ा है उससे बिजली भी बनेगी दूसरे काम भी होंगे। उसका उदघाटन किसने किया? कुछ ऐसा करना जिससे देश का भला ही जरूरी है या कोई मूर्ति बनवाना। कोई भी तथ्य नही सिर्फ एंकर की बस बातें। न्यूज़ पेपर में खबरें सरकार के विज्ञापन की तरह प्रकाशित होती हैं। सरकार की प्रशंशा पहले पेज पर बड़े खबर और उसकी गलतियां अंदर के पेज पर छुपा कर।

क्या सच मे आज पत्रकारिता हो रही है या सिर्फ चमचागिरी हो रही है? पता नही चल पा रहा। सिर्फ चैनल वाले अपने trp के चक्कर में सिर्फ वही खबर दिखाते है जिससे कि जनता एक वोट बैंक में बदलने लगे। मीडिया अगर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है तो उसका एकमात्र कर्म सरकार की निष्पक्ष पड़ताल करना है यही उसकी सार्थकता है उसका एकमात्र काम उसके कामो की आलोचनात्मक विवेचना करना है, तथ्य जुटा कर ये बताना है कि अभी ये काम इतना बांकी है इसमे ये गड़बड़ है क्योंकि अच्छी बातें तो सरकार खुद बता देगी, विज्ञापन पर हज़ारो करोड़ इसी लिए खर्च होते हैं। किसी योजना में क्या कमियां है कग करने से सही होगा ये बताना और उसे सही करवाना ही मीडिया का काम है। 

आजकल सबसे आसान है कि सरकार अगर किसी सवाल पर फंसने वाली होती है तो सरकार हिन्दू मुस्लिम और पाकिस्तान को ले आते है। परमाणु बम चलने लगते है, हमारे विमान पाकिस्तान को तबाह करके कहाँ कहाँ उतरँगे ये भी दिखा देते है लगता है कि कुछ हुआ। सीना चौड़ा हो जाता है। लोगो को लगता है यही सरकार है। मीडिया का ये दौर तब शुरू हुआ जब स्वर्ग की सीढ़ी, दुनियां का खत्मा जैसे खबरों को पूरे पूरे दिन दिखाया जाने लगा। 2010 के आसपास से मीडिया ने अपना चाटुकारिता रूप तेजी से विकसित किया। आज तो ये हालात है कि मंत्री जी छींक भी दें तो पाकिस्तान खत्म हो जाये।

एक उदाहरण लेते है। सरकार के हिसाब से करोड़ो शौचालय बनवाये गए, वो बने या नही, उनमे पानी है या नही, कहीं वो भी तो कागजो में नही बने, कही उनको गोदाम तो नही बना दिया, उनका उपयोग हो रहा है कि नही। ये सब पड़ताल करना ही पत्रकार का काम है ये नहीं की मंत्री जी ने बोला हमने ये कर दिया और लगे उसी पर जनता को बताने ये कर दिया इतना कर दिया ऐसे कर दिया। ये तो सरकार खुद बोलेगी, पत्रकार होने के नाते मीडिया का काम ये होना चाहिए कि सरकार के मंत्री की बोलती बंद हो जाये, वो बोले हम इसको सही करवाते है ये मैने गलती से बोला। ये न बोल पाए कि 70 साल में ये नही हुआ तो समय लगेगा। सही बात हर चीज़ में समय लगता है तो लगाओ लेकिन बोलने की इतनी जल्दी क्यों है? बोलने में भी समय लगाओ न। 

आलोचक होना ही मीडिया का एकमात्र धर्म है। प्रशंशा भी आलोचनात्मक होनी चाहिए। अगर मीडिया अपना काम नही कर पायेगा तो लोकतंत्र का सफल होना संभव नही। लेकिन क्या हो रहा है। कल अयोध्या में लाखों दिए जला कर कर विश्व रिकॉर्ड बनाया गया और सारे चैनल उसका प्रसारण कर रहे है। कोई ये नही बता रहा कि कितना तेल लगा, कितने दिए लगे, कितना पैसा लगा, कोई घोटाला तो नही हुआ। क्या देश जे सभी लोगो के घर रोशन हो गए जो एक जगह इतने दिए जला रहे है। क्या सभी के बच्चों के लिए खाना है खाने का तेल है जो हम ऐसे फूंक रहे है? क्या कोई भूख से नही मर रहा जो सरकार ऐसा आयोजन बेशर्मी से करती है और मीडिया उसको धर्म के नाम पर दिखा रहा है ताकि कोई सवाल नही उठा पाए। 

हो जिसमे दम, कि करदे हाल बुरा सरकार का,
बस ये ही धर्म होता है, सच्चे एक पत्रकार का।

Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं