विश्वास

मजबूर बहुत है लेकिन,
जो करते कर न पाते,
हर ओर अंधेरी छाई,
जिस और भी हम है जाते।

शायद कोई खेल है उसका,
दुनिया मे हमे रुलाना,
कोई काम नही है उसको,
बस हमको ही है सताना।

अब क्या हो कुछ भी बाकी,
कोई राह नजर तो आये,
ऐसा न हो ये जीवन
मिट्टी में मिल जाये।

अब वक्त कोई तो थामे,
गिरतो को कोई उठाये,
पर दुनिया करती उल्टा,
पीछे से मार गिराए।

तू देख तुझे भी एक दिन,
मुझसे झुकना ही होगा,
तू फेंक कोई भी पासा,
तुझको रुकना ही होगा।

तेरे एक चाहत से,
कैसे मैं रुक जाऊं,
है भाग्य विधाता लेकिन,
मैं कर्म को क्यों बिसराऊ।

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