मीत
कोई मीत तुम्हारे जैसा,
हमको भी मिल जाता,
सजता ये जीवन नीरस,
अंधियारा सब छंट जाता,
तुमसे बेहतर तो जग में,
कोई अपना है न पराया,
हूँ ढूंढ रहा मैं कब से,
कोई मीत न तुझसा पाता।
वो सब जो कल तक संग थे,
है वक़्त तो सब हैं भूले।
हूँ द्वार खड़ा मैं कब से,
कोई मीत न दौड़ा आता।
मैं वक़्त का मारा कान्हा,
हूँ जैसे तेरा सुदामा,
तेरी रहमत का कोई,
पैगाम न लेकिन तक आता।
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