समर्पण
"मैं" उसी दिन मिट गया ये,
प्रेम जब तुमसे हुआ था।
आज तो बस तुम ही तुम हो,
तन ये, तेरा ही प्रतिबिम्ब हो।
तेरी आहें, तेरी सांसें,
तेरे सपने तेरे अपने,
अब तो कोई तन मिटा दे,
तन ही क्या ये मन मिटा दे,
तुझसे एकाकार हो बस,
तू ही जीवन सार हो बस,
है सलोने कान्हा मुझपर,
तेरा एकाधिकार हो बस,
बस रहे ये प्रेम निर्मल,
बस रहे ये प्रेम हर पल,
चाहे सृष्टि मिट के जाए,
चाहे कोई रूठ जाए,
बस मेरा प्रेम ये तुझसे,
काल से भी मिट न पाए।
Comments
Post a Comment