बिना तुम्हारे
बिना तुम्हारे हर एक लम्हा,
गुजरा मौत की आहट जैसे।
मैं टुकड़ों में ढूंढ रहा हूं,
वही पुरानी चाहत जैसे।
अब तक भूल नहीं पाया दिल,
साथ गुजारे थे जो लम्हे,
तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर,
पतझड़ की हो आहट जैसे।
बेखौफ गले से वो लग जाना,
पहरों अंखियों से बतियाना।
होठों पर होठों को रखकर,
भूल ही इस दुनिया को जाना।
गई नही अब तक सांसों से,
सांसों की गर्माहट जैसे।
तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर,
पतझड़ की हो आहट जैसे।
अभी तो बस कलियों ने सीखा,
था भवरों के ख्वाब सजाना।
अभी तो बस सपनों ने सीखा,
था साजन को गले लगाना।
रूठ गए सावन के बदरा,
बिन बरसे हो बगावत जैसे,
तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर,
पतझड़ की हो आहट जैसे।
तुमसे मिलने की बेताबी,
बढ़ी, बनी विश्वास मिलन का,
दुनिया पर देखो फिर छाया,
जरा जरा अहसास जलन का,
कांटे भी महसूस यूं होते,
तेरी हो नर्माहट जैसे।
तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर,
पतझड़ की हो आहट जैसे।
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