मृत्यु से विनती (e)

ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक,
जब आना एक पल में आना,
रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा,
और न तुम इसको तड़पाना।


वहीं आज तक खड़ा हुआ है,
जीवन उस अनजान मोड़ पर,
जहाँ से बिछड़े तुम थे मुझसे,
ढूंढ रहा तुम्हें कोर-कोर पर।
ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक,
जब पाना प्रियतम सा पाना,
रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा,
और न तुम इसको तड़पाना।

तिल-तिल छिन-छिन जो ऐसे तुम,
आओगे तो कैसे होगा,
मिलन यूं होगा फीका-फीका,
उन्मुक्त मिलन न ऐसे होगा,
ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक,
हाथ पकड़ हक़ से ले जाना,
रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा,
और न तुम इसको तड़पाना।


कहने को तो क्रूर बहुत तुम,
पर जीवन परिपूर्ण तुम्हीं से,
खुद को मिटा कर तुमको पाना,
प्रेम अमर सम्पूर्ण तुम्हीं से,
ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक,
जल में जल जैसा मिल जाना
रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा,
और न तुम इसको तड़पाना।


प्रतिध्वनि सितंबर पत्रिका
ebook published अभिव्यक्ति सांझा काव्य संग्रह

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