या तो इश्क़ का ये सरूर था

या तो इश्क़ का ये सरूर था,
या तो हुस्न का ये गरूर था,
वो गया बची है खलिश सी क्यों
तेरे दिल में कुछ तो जरूर था।

हाँ ये उल्फतों की दुकान एक,
सुना प्यार भी यहां बिक रहा,
बड़ी दूर तक ये गई खबर,
यहां प्यार जिस्मों में दिख रहा,
अब तो ढूंढती है नज़र महल,
कभी प्यार में ये फिजूल था।
वो गया बची है खलिश सी क्यों
तेरे दिल में कुछ तो जरूर था।

नया राग था जो बजा यहां,
नया एक फसाना गढ़ा गया,
नए चांद तारों की छांव में,
वही इश्क़ फिर से पढ़ा गया,
तू चली, थमी, फिर चली जहां,
तेरी हर अदा में शुऊ'र था।
वो गया बची है खलिश सी क्यों
तेरे दिल में कुछ तो जरूर था।

कुछ तो खत हैं सूखे गुलाब से,
कोई याद जिसमे अटक गई,
ये नई नई जो हैं महफिलें,
कोई चाह बीती भटक गई,
नए गीत बुनने की चाह थी,
नई मंजिलों का फितूर था।
वो गया बची है खलिश सी क्यों
तेरे दिल में कुछ तो जरूर था।

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