तुम समझते नहीं

तुम समझते नहीं दिल की क्या आरजू,
कैसे कितना कहे इश्क की जुस्तजू,
तुम क्यों दिल पर मेरे हाथ रखते नहीं।
क्यों मोहब्बत ये मेरी समझते नहीं,

जान जलती है मेरी तुम्हारे लिए,
आह भरती जवानी तुम्हारे लिए,
बस तुम्हारे लिए सांस का सिलसिला,
तुम क्यों बाहों में मेरी अटकते नहीं?

तेरी जुल्फों का नभ पर अंधेरा हुआ,
चांद छुपने लगा चांद दिखने लगा,
मैंने दिल की ये धड़कन संभाली बहुत,
तुम क्यों धड़कन में मेरी सिमटते नहीं?

जो तारीफ होगी तो शरमाओगी,
जो भी देखेगा उसके ही मन भाओगी,
हुस्न का ही है बस तेरा छाया नशा
तुम क्यों गलियों में दिल के भटकते नहीं।

कुछ तो ऐसा भी हो जिसमें मैं तुम न हों,
कुछ न तेरा मेरा, बस हम हम ही हों,
गीत हों जो मेरे, तेरी आवाज हो,
ये अहम दूर हम तुम क्यों रखते नहीं।

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