कश्मकश
शाम सुहानी हो जाएगी,
तुमसे दो बातें जो कर लूँ
मन मोहे, तूं, संध्या आभा,
किसको मैं यादों में भर लूँ।
प्रेम के इस झरने मे बैठे,
क्या जीवन ये जी पाऊँगा।
खो देने की आशंका से,
कैसे पर खुशियों को तज दूँ।
अटल सत्य है जीवन मानो,
मृत्यु क्रिया की प्रतिक्रिया।
कैसे मैं एक प्रतिक्रिया पर,
गिरवी सारी क्रिया रख दूँ।
जाने या अनजाने में हों,
पाप मगर हो ही जाते है,
कर्म करूँ, कुछ पुण्य कमाऊं,
पाप या बस घाटों पर तज दूँ।
सोच रहा रसमय सृष्टि से,
क्या दो बूंदे पी पाऊँगा।
परवशता का ढ़ोल पीटकर,
कैसे मैं कर्मो को तज दूँ।
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