स्वप्न नगरी

एक शहर बनाऊं ऐसा,
जिसमे कोई गैर नहींं हो।
सपने सबके हों पूरे,
कोई दिल में बैर नहींं हो।

हों रातें काली लेकिन, 
कोई बेटी न डर पाए।
बेफिक्र सभी मंजिल पर, 
वो आगे बढ़ती जाए।
जो उसका रास्ता रोके,
ऐसी अंधेर नहींं हो।
सपने सबके हों पूरे,
कोई दिल में बैर नहींं हो।

जिस आंगन में हों कान्हा,
वही गुरवाणी भी गाएँ
वहीं बैठें नमाजी सारे,
वहीं यशु की प्रेयर गाएँ।
वहीं जैन, बुद्ध की शिक्षा,
अज्ञान की खैर नहींं हो।
सपने सबके हों पूरे,
कोई दिल में बैर नहींं हो।

इस नगर में कोई मानव,
कभी भूखा न सो पाए।
कोई बच्चा बीच सड़क पर,
न भीख मांगने जाए।
सबको जीवन की सुविधा,
पैसे की मेहर नहींं हो।
सपने सबके हों पूरे,
कोई दिल में बैर नहीं हो।

हो राजा न अभिमानी,
करें मंत्री न मनमानी।
जहां लोक का तंत्र रहे बस,
जहाँ न्याय में हो आसानी।
निष्पक्ष जहां हो खबरें,
सत्ता का जोर नहीं हो।
सपने सबके हों पूरे,
कोई दिल में बैर नहींं हो।

हो साफ हवा ओ पानी,
हों चिड़ियों की भी कहानी।
जहां तितली जुगनू डोलें,
है स्वप्न मेरे आसमानी।
पर काश ये सच हो जाएं,
बस इसमे देर नहींं हो।
सपने सबके हों पूरे,
कोई दिल में बैर नहीं हो।

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