आदि, अंत, मध्य तुम सब हो


आदि, अंत, मध्य तुम सब हो, 

मेरे इस जीवन सफर का,

दिन रात सुबह हो मेरी, 

तुम्ही रंग मेरे गुलशन का।


बहुत दिवस बीते तुम आये, 

आये भी न आये जैसे,

कितनी खुशियां लेकर आये, 

लाये, कुछ न लाये जैसे।

माना तुम ही प्राण हो मेरे, 

सच्चे एक भगवान हो मेरे।

बोलो कब तक यूँ ही जलेगा, 

बुझता दिया मेरे जीवन का।

दिन रात सुबह हो मेरी, 

तुम्ही रंग मेरे गुलशन का।


कोई ऐसी बात नही, 

जो तुमसे कह पाये हम,

कोई ऐसी रात नहीं कि, 

ख्बावों में खो जायें हम,

मेरे कण्ठों की बोली तुमही, 

मेरी साँझ और रात तुम्हीं हो,

साँसो की सरगम हो तुम ही,

साज तुम्ही मेरे जीवन का।

दिन रात सुबह हो मेरी, 

तुम्ही रंग मेरे गुलशन का।


आते नहीं तो अच्छा होता, 

हम जीवन में सामने तेरे,

इस दिल में तन्हाई भले थी, 

पर फिर भी कुछ अरमान थे मेरे,

इस दिल के मेहमान हो अब तुम, 

जिंदा मैं और जान हो अब तुम।

सपनों का एक सार हो तुम ही, 

आधार तुम्हीं मेरे जीवन का।

दिन रात सुबह हो मेरी, 

तुम्ही रंग मेरे गुलशन का।

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