है रात अमावस तब से
है रात अमावस तबसे, तुम जबसे नही हो आये,
गीत भी हैं सब सूने, जो तुमने नही हैं गाये।
जानी पहचानी सब राहें, लगती है अनजानी,
तुम साथ नही जो मेरे, कोई मंजिल मन न भाये।
तुम हो जैसे मधुशाला, मैं टूटी सी एक प्याली,
तुम पूनम की परिभाषा, मैं रात अमावस काली,
मैं स्वप्न की इस नगरी का, हूँ एक भिखारी जैसे,
तुम जीवन की अभिलाषा, मैं नोट हूँ जैसे जाली।
तुम पारस मुझ पत्थर को, सोना सोना कर दोगे,
तुमको पाने की हसरत, मेरे दिल से नही है जाये।
तुम साथ नही जो मेरे, कोई मंजिल मन न भाये।
कैसी हलचल मेघों में, ये हुई क्या तुमने बोला,
सारी दुनियां की मय को, होठों ने पीछे छोड़ा,
विरले हो पाती है, कोई रचना जैसी तुम हो,
सृष्टि से सर्वोत्तम, जो मिला वो तोहफा तुम हो
मेरे स्वप्नों की सरगम, गीतों की सूनी दुनियां,
तुम गा दोगी जिसको, वो गीत अमर हो जाये।
तुम साथ नही जो मेरे, कोई मंजिल मन न भाये।
तुम शब्दकोश भावों का, मैं भूली सी कोई बोली,
तुम प्रेम का एक सागर, मैं छोटी सी कोई डोंगी,
सारे अरमानों में मन के, बस एक तुम्हारा होना,
स्वप्नों की दुनियां में बस, हर ओर तुम्हारा कोना,
कितने मन मीत मिले जो, मन में तूफान उठाये,
तुम थाम लो मुझको मेरा, मन चैन जरा पा जाए।
तुम साथ नही जो मेरे, कोई मंजिल मन न भाये।
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