कैसे?

मैं जमाने को मेरा इश्क दिखाऊं कैसे
जो हैं दुश्मन मैं उसे मीत बनाऊं कैसे।

वो गया टूट मेरी चाहत का  सितारा देखो,
मन के आकाश में फिर उसको सजाऊँ कैसे।

फिर न आऊंगा तेरे दर पर, कसम है मुझको,
बस बता दे तेरी गलियों से मैं जाऊं कैसे।

और भी हैं तो सितम मुझपर ही ढा लो आकर,
मुझको लत सी है तेरी, आदत ये भुलाऊं कैसे।

रोज बह जाता हूँ खुशबू में घटाओं में तेरी,
रोज आता है ये सैलाब, मैं बच जाऊँ कैसे।

09 दिसंबर, 2019



मैं जमाने को मेरा इश्क दिखाऊंगा कभी 
जो है दुश्मन उन्हें दोस्त बनाऊंगा कभी 

था गया टूट मेरी चाहत का सितारा एक दिन
मन के आकाश में फिर उसको सजाऊंगा कभी 

छोड़ जाता हूं तेरी खातिर तेरा दर मान मगर, 
यहीं पर लौट मैं मेरा घर भी बनाऊंगा कभी।

ओ सितमगर तेरा हर वार मुझे कबूल है पर,
तेरी आदत को दिल से मैं भुलाऊंगा कभी ।

तोड़ दूंगा तेरी जुल्फों की इन जंजीरों को,
कैद से तेरी खुद को मैं छुड़ाऊंगा कभी।

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