लगता है भगवान हूँ मैं
जिसकी आंखें बंद है कान्हा, कलयुग का इंसान हूँ मैं,
धन दौलत जो मिली जरा सी, लगता है भगवान हूँ मैं।।
अज्ञानी हूँ, बड़बोला हूँ, नेक नही कुछ काम किया,
इस जग को बस जीतना चाहूं, मूरख हूँ नादान हूँ मैं।।
लाख कुपथ जाता हूँ मैं पर, तू मुझको सुपथ दिखता,
छेड़ बांसुरी की सुमधुर धुन, राह मुझे तू नेक बताता,
मैं ये समझूँ, सर्वज्ञानी हूँ, अपना विधि-विधान हूँ मैं,
धन दौलत जो मिली जरा सी, लगता है भगवान हूँ मैं।।
ना सोया, ना जागना चाहूँ, सच्चाई से भागना चाहूँ,
अंधकार में गिरा निरन्तर, अंधकार ही पालना चाहूँ।
मुझको अब तेरी ही आशा, पापी एक इंसान हूँ मैं।
इस जग को बस जीतना चाहूं, मूरख हूँ नादान हूँ मैं।।
बांसुरी की तान मनोहर, कान्हां फिर वो मधुर सुना दो,
अज्ञान से भरा हृदय ये, गीता सा कुछ ज्ञान नया दो।
मन जाने तू ही सर्वव्यापी, तेरा ही निर्माण हूँ मैं,
धन दौलत जो मिली जरा सी, लगता है भगवान हूँ मैं।।
जिसकी आंखें बंद है कान्हा, कलयुग का इंसान हूँ मैं,
धन दौलत जो मिली जरा सी, लगता है भगवान हूँ मैं।।
अज्ञानी हूँ, बड़बोला हूँ, नेक नही कुछ काम किया,
इस जग को बस जीतना चाहूं, मूरख हूँ नादान हूँ मैं।।
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